शहर का परिचय
ऐसी मान्यता है कि जबलपुर, एक पौराणिक ऋषि जबाली की तपस्या भूमि है जिस पर जबलपुर का नाम पड़ा है। यहां पर अशोक वंश के अवशेष मिले हैं। 9वीं और 10वीं शताब्दी में यह त्रिपुरी राज्य की राजधानी था। 875 ईं0 में यहां कलचूरी वंश का शासन हुआ जिन्होने जबलपुर को अपनी राजधानी बनाया। 13वीं शताब्दी में गोंड जाति ने इस पर कब्जा करके इसे अपनी राजधानी बनाया। अभिलेख से पता लगता है कि हैइहई जाति के राजकुमार जो कि गोंडवाना के इतिहास से संबंधित हैं, उन्होने भी यहां राज्य किया। 16वीं शताब्दी में गढ़ मंडल के गोंड राजा ने जबलपुर सहित बावन जिले तक अपनी सत्ता को फैलाया। कड़ा मानिकपुर के वायसराय आसफ़ खान, अपने पोते की अल्प आयु के कारण गढ़ राज्य को जीत कर इसके स्वतंत्र प्रमुख बने। बाद में वह मुगल बादशाह अकबर के अधीन हो गए। समय समय पर मुगल शासको ने इस पर आधिपत्य करने का प्रयास किया। विख्यात रानी दुर्गावती महान मुगल बादशाह अकबर की सेनाओं से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुई।
मुग़ल साम्राज्य यहां अपना आधिपत्य पूरी तरह नहीं स्थापित कर पाया और गढ़ मंडल के राजकुमार 1761 में सागर के प्रांतीय गवर्नरों की अधीनता से लगभग स्वतंत्र हो गए। 1798 में मराठा पेषवा ने नर्मदा घाटी नागपुर के भोसले शासकों को दे दी। 1818 में अंग्रेजों ने मराठाओं को हरा कर इस पर अपना अधिपत्य कर लिया। अंग्रेजों ने जबलपुर को नर्मदा क्षेत्र का कमीशनरी मुख्यालय बनाया और यहां एक छावनी स्थापित की। ब्रिटिश राज में जबलपुर को नर्मदा क्षेत्र की राजधानी बनाया गया। यह उस समय बब्रिटिश उत्तर पश्चिम सीमांत का हिस्सा था। उस समय यह ठगी, हत्याओं के कारण बदनाम था लेकिन कर्नल स्लीमन जो उस समय जबलपुर के कमीशनर थे, उन्होने ठगी को समाप्त कर दिया। सागर और नर्बदा क्षेत्र 1861 में नए मध्य प्रांत का हिस्सा बने जो 1903 में केंद्रीय प्रांत और बरार कहलाया। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में जबलपुर, दक्षिण सेना की 5वीं डिवीजन का ब्रिगेड मुख्यालय था।
1939 में सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में त्रिपुरी में कांग्रेस का अधिवेषन एक महत्वपूर्ण घटना थी। लोकमान्य तिलक की अध्यक्षता में झंडा सत्याग्रह की शुरूआत हुई। वे यहां तीन बार और महात्मा गांधी 4 बार आए। 1939 में ही कांग्रेस का मशहूर त्रिपुरी (जबलपुर) अधिवेषन हुआ और सुभाष चंद्र बोस को महात्मा गांधी की इच्छा के विरूद्ध कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस के इसी अधिवेशन में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए दो विचारधाराएं बनाई गई। इसी की स्मृति में कमानिया द्वार बनाया गया है।
1947 में भारत की आजादी के बाद मध्य प्रांत और बरार को मिलाकर मध्य प्रदेश राज्य बनाया गया।